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पिछली कथा से आगे…
राजा के कहने पर तोते ने कहा- राजन मेरी यह कथा सुनकर आपको यह विश्वास हो जाएगा कि स्त्री कितनी झूठी, लालची और हत्यारी होती है. तोते ने कहानी सुनानी शुरू की.
सागरदत्त नाम का एक सेठ कंचनपुर नामक नगर में रहता था. उसका कारोबार दूर-दूर तक फैला था और नगर में उसका बड़ा नाम था. उसका श्रीदत्त नाम का एक पुत्र था.
कंचनपुर से बस सवा कोस की दूरी पर एक और नगर था, नाम था श्रीविजयपुर. उस नगर में सोमदत्त नाम के सेठ का बड़ा कारोबार चलता था. सोमदत्त की साख भी दूर-दूर तक थी.
सोमदत्त की एक लड़की थी जयश्री जिसका विवाह श्रीदत्त से हुआ था. ब्याह के बाद श्रीदत्त भी व्यापार करने परदेस चला गया. बारह बरस हो गए फिर भी श्रीदत्त नहीं आया तो जयश्री व्याकुल होने लगी.
एक दिन वह अपने छत पर खड़ी थी कि उसे एक बड़ा सजीला युवक दिखाई दिया. उस युवक ने भी उसे देखा तो वह देखता रह गया. उसने कुछ प्रेमपूर्ण संकेत किए तो जयश्री ने भी प्रेम दर्शाया.
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