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चेतना आने पर उसने मुझे शाप दिया कि जिस प्रकार तुमने विषहीन सर्प बनाकर डराया, तू वैसा ही विषहीन सर्प बन जा. मैंने उससे बहुत क्षमा प्रार्थना की तो उशने कहा कि शाप खत्म करना उसे नहीं आता.
परंतु उसने मुझे उपाय बताया कि प्रमति के पुत्र रुरु होंगे जिनका सर्पों से बैर होगा. उनसे मिलने पर तुम्हारे शाप का अंत हो जाएगा. ऋषि सर्प योनि त्यागकर वास्तव रूप में आए और रुरु को कई प्रवचन दिए.
अपराध यदि व्यक्तिगत हो तो दंड भी व्यक्तिगत होना चाहिए. किसी एक व्यक्ति के अपराध की सजा उस पूरी जाति को क्यों को मिलनी चाहिए जिससे अपराधी का सरोकार है.
विद्वेष को कम से कम रखना चाहिए क्योंकि यह एक ऐसा विष है जिसे रोका न गया तो फैलता हुआ संपूर्ण समाज को ग्रस लेता है. महाभारत के आदि पर्व की नीति कथा.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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