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उन्हें मित्रावरूण और उर्वशी के संयोग से फिर से देह धारण करना पड़ेगा यानी जन्म लेना पड़ेगा. यह कथा बड़ी रोचक है और इसकी चर्चा आगे अवश्य करेंगे. वशिष्ठ का जन्म उर्वशी और मित्रावरूण से हुआ.
इघर निमि के यज्ञ समाप्त होने पर सभी देवता अपनी आहुति ग्रहण करने पधारे. निमि ने अशरीर होते हुए भी सबकी उत्तम स्तुति की. देवताओं ने प्रसन्न होकर निमि से कहा कि इस यज्ञ के फलस्वरूप उन्हें मानव या देवता का स्वरूप मिल सकता है. देवताओं ने उनसे इच्छा पूछी.
निमि की ओर से उनके ऋत्विज ऋषियों और प्रजा ने देवताओं से प्रार्थना की कि ऐसा प्रजापालक और उत्तम राजा बहुत सौभाग्य से प्राप्त होता है. इसलिए देवतागण राजा निमि का मानव शरीर वापस कर दें.
निमि ने कहा- हे देवताओं! इस शरीर के खो देने के डर में भरकर मैंने क्रोधवश देवतुल्य अपने गुरू को शाप दिया. अतः मुझे अब शरीरमोह से विरक्ति हो गई है. मैं देव या मानव शरीर की इच्छा नहीं रखता.
यदि आप मुझपर प्रसन्न होकर कोई वरदान देने को इच्छुक हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि मैं अपनी प्रजा के नेत्रों में रहकर अशरीर होते हुए भी उसके सुख-दुख में सदैव भागी और प्रत्यक्ष रहूं.
देवताओं ने निमि से कहा- माता जगदंबिका से यह वरदान मांगे. वह स्वयं आपको वरदान देने की इच्छुक हैं. देवों ने निमि को जगदंबा की स्तुति का गुप्त स्तोत्र प्रदान किया. निमि ने जगदंबा की स्तुति की.
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