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हालांकि बलरामजी को कुछ आशंका तो हुई लेकिन चूंकि रूक्मी द्वारका में उनके अतिथि थे, ऊपर से उन्होंने चुनौती दी थी इसलिए वह आखिर मना कैसे करते.
रुक्मी और बलरामजी के बीच चौसर का खेल शुरू हुआ. बलरामजी सज्जन थे लेकिन कुसंग में पड़ गए. जुए के खेल में छल-कपट की भरमार रहती है लेकिन वह तो छल-कपट जानते नहीं थे, सो वह जल्दी हार भी गए.
रूक्मी तो बलरामजी के अपमान का अवसर तलाश ही रहा था. खेल में हारे बलरामजी पर वह तरह-तरह से आक्षेप करने लगा. भरी सभा में बलरामजी को अपमानित करने में उसने अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ा.
रुक्मी ने कहा-बलरामजी! आखिर आप लोग वन-वन भटकने वाले ग्वाले ही तो ठहरे. आप पासा खेलना क्या जानें? पासों और बाणों से तो केवल राजा लोग ही खेला करते हैं, आप जैसे जंगल में भटकने वाले ग्वाले नहीं?
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आपके द्वारा दी गई कथाएँ काफी रोचक व ग्यानबर्धक है आपको कोटि कोटि आभार