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उन सभी ने कहा कि गौतम पर स्वयं वरूणदेव की कृपा है. उनके तप के आगे हम असमर्थ हैं. इसलिए अपने मन से गौतम के प्रति द्वेष का त्याग करो. इससे वे स्त्रियां और क्रोधित हो गईं.

उन्होंने अपने पतियों से साफ-साफ कह दिया कि यदि वे सभी मिलकर इतने क्षमतावान नहीं हैं तो वे उनका त्याग कर देंगी. हारकर उन ब्राह्मणों ने गौतम का अनिष्ट करने के लिए गणेशजी की आराधना शुरू की.

गणेशजी के प्रसन्न होने पर उन ब्राह्मणों ने वरदान मांगा कि आप कोई ऐसा उपाय करें जिससे इस क्षेत्र में निवास करने वाले सभी ऋषि-मुनि गौतम के द्रोही हो जाएं और उन्हें यहां से भगा दें.

गणेशजी ने उन सबको बहुत समझाया और इस वरदान की याचना नहीं करने को कहा. गणपति ने याद कराया कि गौतम परोपकारी हैं. अकाल के कारण दु:ख भोग रहे तुम लोगों को उन्होंने उपकार किया. उन्हें सताकर पाप के भागी बनोगे.

गणपति ने ब्राह्मणों को पुनर्विचार करने को कहते हुए कोई और वरदान मांगने को कहा किंतु पत्नियों की जिद के आगे वे झुक गए. वे दुष्ट दुराग्रह पर अड़े रहे और दूसरा वर लेने को तैयार नहीं हुए.

गणेशजी अपने भक्तों के अधीन थे. न चाहते हुए भी गौतम के अनिष्ट के वर को स्वीकार करना पड़ा. गणपति ने भारी मन से कहा कि अपना दिया वचन अवश्य पूर्ण करूंगा.

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