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जामवंत ने श्रीकृष्ण को स्यंतक मणि सौंपते हुए उनसे विनती कि वह उनकी पुत्री जामवंती से विवाह करें. भगवान जामवंती से विवाहकर स्यंतक मणि लेकर द्वारका लौटे और सारी बात महाराजा उग्रसेन जी बताई.

भगवान ने मणि सत्राजित को वापस कर कलंक से मुक्ति पाई. सत्राजित लज्जित हुए. उन्होंने श्रीकृष्ण को स्यतंक मणि दे दी और अपनी पुत्री सत्यभामा का उनसे विवाह कर दिया. सत्यभामा को प्रभु ने पटरानी का दर्जा दिया.

जिस दिन सत्राजित ने प्रभु पर आरोप लगाया था वह भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी थी. मान्यता है कि इस दिन चंद्र दर्शन करने से कोई बड़ा कलंक लगता है. उससे मुक्ति के लिए कृष्ण और सत्यभामा के विवाह की कथा जरूर सुननी चाहिए.(विष्णु पुराण की कथा)

आज से पूरे गणपति उत्सव तक हम आपको भगवान श्रीगणेश की कथाएं, विभिन्न प्रभावशाली मंत्रों के बारे में प्रतिदिन कुछ बहुत उपयोगी जानकारियां देंगे. गणेशजी की स्थापना के मंत्र और विधि से भी आज परिचित कराएंगे. गणपति की ये कथाएं ऐसी हैं जो आपने न सुनी होंगी. आपको नई बात जानने को मिलेगी.

जैसे क्या पार्वतीपुत्र ही गणेश हैं या गौरीपुत्र गणेश का कोई और रहस्य है. यदि पार्वतीपुत्र ही गणेश होते तो फिर शिव-पार्वती विवाह में गणपति की पूजा कैसे होती? सोचिए. स्वयं ब्रह्माजी ने शिव-पार्वती के विवाह से पहले गणेश पूजन कराया था. यानी आप जो जानते हैं वह बात ही पूरी नहीं. रहस्य कुछ और भी है.

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