स्वर्ग और नरक का फर्क क्या सिर्फ उसके सुखों या यातनाओं को भोगकर ही समझा जा सकता है? या स्वर्ग और नरक हमारे मन के अंदर हैं, बस झांकने का फेर है? व्यवहारिक कथा, बहुत कुछ सिखाएगी.

swarg-aur-narak-ka-fark-vishnu.jpg

धार्मिक व प्रेरक कथाओं के लिए प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े, लिंक-
[sc:fb]

स्वर्ग और नरक के बारे में शास्त्रों में बहुत वर्णन आता है. स्वर्ग जहां सुखों का पर्याय है वहीं नरक कष्टों का लोक.  स्वर्ग और नरक के फल क्या सिर्फ जीवन के बाद के लोक में ही है? क्या जीवनकाल में मनुष्य स्वर्ग और नरक के चरणों से नहीं गुजरता? क्या स्वर्ग और नरक का भेद समझने के लिए मरना ही जरूरी है? या जीवित रहते भी जान सकते हैं स्वर्ग और नरक का भेद?

स्वर्ग और नरक के विषय में व्यवहारिक फर्क सिखाएगी ये कथा. स्वर्ग और नरक लोक के भाव को समझने में सहायता करके आपको आनंदित करेगी, आपका ज्ञान बढाएगी.

एक संत के बारे में प्रसिद्ध था कि वह लोगों की शंकाओं और समस्याओं का व्यावहारिक समाधान देते हैं. वह लोगों को समझाने के लिए ऐसे उदाहरण दिया करते जो बड़े व्यवहारिक होते थे. बात व्यक्ति की अंतरात्मा को छू जाती थी.

[irp posts=”6386″ name=”नवरात्रि पूजा जरूर करनी चाहिए, जानें नवरात्र का वैज्ञानिक आधार”]

एक बार उनके पास सेना का एक वरिष्ठ अधिकारी आया. उसने विनीत भाव से उनके चरण स्पर्श किए. उसने अपने मन में लंबे समय से चल रहा एक प्रश्न रखा.

अधिकारी ने कहा- महात्माजी मैं अक्सर लोगों को स्वर्ग और नरक के बारे में बातें करते सुनता हूं किंतु अभी तक मुझे कुछ समझ नहीं आया. स्वर्ग और नरक आखिर बला क्या है. आप मुझे स्वर्ग और नरक के बारे में बताएं. इस वैचारिक उलझन से निकलने का रास्ता दिखाइए.

संत ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराए. बजाए सीधे उसके प्रश्नों का उत्तर देने के पहले उससे इधर-उधर की कुछ बातें करने लगे. फौजी अधिकारी अनुशासित होते हैं. नपी-तुली बात पसंद करते हैं, पर महात्माजी तो इधर-उधर की बातें करने लगे.

फौजी मन ही मन खीझने लगा. महात्माजी के बारे में उसके मन में तरह-तरह के भाव आने लगे.

सोचने लगा, इसके बारे में झूठी अफवाह फैला रखी है लोगों ने. यह व्यवहारिक जवाब क्या देगा यह तो दो टूक जवाब भी नहीं दे रहा. व्यग्रता के कारण फौजी में लगातार नकारात्मक भाव आते रहे. महात्माजी उसके चेहरे के सारे भाव पढ़ रहे थे.

[irp posts=”5159″ name=”भगवान को क्या पसंद है?”]

अब महात्माजी ने उस अधिकारी से पूछना शुरू किया.

महात्माजी ने पूछा- फौज में आपकी क्या जिम्मेदारी है? अपनी उपलब्धियां बताइए. अपनी बहादुरी के कोई प्रसंग याद हों तो सुनाइए.

यह सुनकर फौजी के मन के भाव फिर बदलने लगे. अब वह खुश होने लगा. गर्व के साथ अपनी बातें कहने लगा. अपने फौजी जीवन की उपलब्धियां एक-एक करके गिनाने लगा. उसकी बातों से फौजी होने का रोब साफ-साफ दिख रहा था.

हिंदू धर्म से जुड़ी सभी शास्त्र आधारित जानकारियों के लिए प्रभु शरणम् से जुड़ें. एक बार ये लिंक क्लिक करके देखें फिर निर्णय करें. सर्वश्रेष्ठ हिंदू ऐप्प प्रभु शरणम् फ्री है.

Android ऐप्प के लिए यहां क्लिक करें


लिंक काम न करता हो तो प्लेस्टोर में सर्च करें-PRABHU SHARNAM

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here