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अदिति को वरदान देकर सूर्य अंतर्धान हो गए और उनसे कहा कि जल्द ही वह उनके गर्भ से अवतार लेंगे. समय आने पर सूर्य का तेज अदिति के गर्भ में स्थापित हो गया.

एक दिन कश्यप और अदिति साथ में ही आश्रम में बैठे थे. किसी विषय पर चर्चा चल रही थी. अचानक ही कश्यप किसी बात को लेकर अदिति पर क्रुद्ध हो गए. क्रोधित कश्यप ने अदिति के गर्भस्थ शिशु के लिए ‘मृत’ शब्द का प्रयोग कर दिया.

कश्यप के ‘मृत’ शब्द का उच्चारण करते ही अदिति के शरीर से एक दिव्य प्रकाश पुंज निकला. उस प्रकाश पुंज को देखकर कश्यप मुनि भयभीत हो गए. उन्हें अपने शब्दों पर पश्चाताप होने लगा और वह सूर्यदेव से अपने अपराध की क्षमा मांगने लगे.

तभी आकाशवाणी हुई- मुनिवर! मैं तुम्हारे अपराध क्षमा करता हूं. तुम इस पुंज की उपासना करो. उचित समय पर इससे एक दिव्य बालक जन्म लेगा और तुम्हारी इच्छा पूर्ण करने के बाद ब्रह्माण्ड के मध्य में स्थित हो जाएगा.

महर्षि कश्यप और अदिति ने वेद मंत्रों द्वारा प्रकाश पुंज की स्तुति आरंभ कर दी. उचित समय आने पर उसमें से एक तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ.

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