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श्रीराम अयोध्या के राजा के रूप में सिंहासन पर विराजमान हो चुके थे. उनके न्याय से प्रजा प्रसन्न थी.
विपत्ति में जिसने भी प्रभु को सहारा दिया था, प्रभु ने उन्हें भरपूर सम्मान दिया. सुग्रीव किष्किंधा के राजा तो अंगद युवराज बने. विभीषण लंकापति बने.
श्रीराम और माता सीता दोनों विपत्ति काल में हनुमानजी के किए उपकारों की चर्चा हमेशा अपने सभासदों के बीच आनंद विभोर होकर किया करते थे.
सभासदों ने एक दिन कहा- आपने उन सभी को पद दिया जिन्होंने आपका प्रिय किया था, पर हनुमानजी को कोई पद नहीं मिला. उनके साथ न्याय न हो सका.
श्रीराम तो जानते थे कि हनुमानजी को प्रभु भक्ति के अतिरिक्त कोई इच्छा ही नहीं लेकिन सभासदों के मन से यह बात निकालनी जरूरी थी कि न्याय में चूक नहीं हुई है.
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