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अब ध्रुवजी को चिंता हुई कि कहीं आखिर में प्रभु इस पापी को ध्रुवलोक में ही स्थान न दे दें. इसका पाप इतना बड़ा है की इसके पाप के बोझ से ध्रुवलोक गिरकर नीचे आ जायेगा. यह लोक भी प्रभु ने ही दिया है इसलिए इसकी रक्षा वही करेंगे.

ऐसा विचारकर ध्रुवजी भी कहने लगे- प्रभु आपने ही ध्रुव लोक प्रदान किया है. आप इस पापी को मेरे पास भी मत भेजिएगा. अन्यथा आपके द्वारा प्रदत्त मेरा ध्रुव लोक इस पापी के कारण संकट में आ जाएगा. रक्षा करिएगा प्रभु.

दस लोकों के दसों दिकपालों को भी चिंता थी. जिनका अपना अलग से लोक बना था उन सभी देवताओं ने विनयपूर्वक प्रभु से गुहार लगाई और उस निकृष्ट पापी धोबी को अपने लोक मे रखने से क्षमायाचना के साथ मना कर दिया.

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