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परम ज्ञानी बनकर कवि देवताओं के पास गए. लेकिन उनके साथ फिर भेदभाव हुआ. देवताओं ने कवी को गुरू बनाने के स्थान पर अंगिरा पुत्र जो अब बृहस्पति नाम से प्रसिद्ध हुए, उन्हें गुरू बना लिया.
बचपन में अंगिरा के कारण कवी दुखी था, बड़े होने पर उनके पुत्र के कारण. इससे कुपित कवि असुरों के गुरू बन गए. वह महादेव द्वारा दिए मृत संजीवनी विद्या के बल पर असुरों को जीवित कर देते थे. इसलिए असुरों में उनका बड़ा सम्मान था.
अंधकासुर के साथ जब महादेव का संग्राम शुरू हुआ. महादेव ने दैत्य सेना का विनाश कर दिया. निराश अंधक ने दैत्यगुरू से सेना को फिर से जीवित करने की विनती की. शुक्राचार्य शिवजी द्वारा मिली मृत संजीवनी विद्या से दैत्यों को जीवित करने लगे.
दैत्यगुरू ने असुरों को जीवित करना शुरू किया तो अंधकासुर महादेव पर आक्रमण करके देवी पार्वती को प्राप्त करने की मंशा फिर से बनाने लगा. अंधकासुर को समझाने प्रहलाद आए.
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