shiva
आप बिना इन्टरनेट के व्रत त्यौहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र , श्रीराम शलाका प्रशनावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ तथा उपयोग कर सकते हैं.इसके लिए डाउनलोड करें प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प.
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
[sc:mbo]
पिछला भाग पढ़ने के लिये क्लिक करे
पिछले दो भाग में आपने पढ़ा कि कैसे देवी पार्वती द्वारा महादेव के त्रिनेत्र मूंद देने से समस्त संसार अंधकारमय हुआ और उनके पसीने से अंधक का जन्म हुआ. अंधक को महादेव ने असुरराज हिरण्याक्ष को दिया.

अंधक ने ब्रह्मा को तप से प्रसन्न कर वरदान ले लिया कि उसकी मृत्यु का कारण माता पर आसक्ति बने. अंधक पार्वतीजी पर मुग्ध हो गया. उसने पार्वतीजी को पाने के लिए शिव से युद्ध शुरू किया.

परंतु शिवजी उसे अपना पुत्र समझकर माफ करते गए. असुरों के गुरू शुक्राचार्य को प्राप्त मृत संजीवनी के दम पर वह फिर से शिव से युद्ध ठान रहा था. शुक्राचार्य शिवजी से मिली विद्या का प्रयोग शिवजी के विरूद्ध कर रहे थे.

इसलिए शिव ने उन्हें लील लिया और अंततः महादेव के लिंग के रास्ते शुक्र रूप में बाहर आए. इसीलिए उन्हें शुक्र नाम मिला और शुक्राचार्य हुए. यहां तक की कथा आपने पहले पढी. अंधकासुर की कथा आगे बढ़ाने से पहले शुक्राचार्य की यह कथा भी पढते चलें.

महर्षि अंगिरा और भृगु मुनि में मित्रता थी. अंगिरा और भृगु के समान आयु के दो पुत्र थे. अंगिरा के पुत्र थे जीव जबकि भृगु के पुत्र का नाम था कवि. दोनों बालक अंगिरा के आश्रम में रखकर उनसे शिक्षा ग्रहण करने लगे.

दोनों बालक तेजस्वी और बुद्धिमान थे किन्तु पुत्र मोह के कारण अंगिरा दोनों में भेदभाव करने लगे. उन्होंने अपने पुत्र जीव की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया जबकि कवी की शिक्षा को लेकर वह नीरस रहने लगे.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here