[sc:fb]

माघ मास की संकष्ठि गणेश चतुर्थी को बहुत फलदायी व्रत माना जाता है. खासतौर से संतान के सुख के लिए इसका बड़ा माहात्म्य कहा गया है. 27 जनवरी को है यह चतुर्थी. हमने कल इस चतुर्थी की संक्षिप्त पूजा विधि और दो प्रचलित व्रत कथाएं बताई थीं. कल की पोस्ट भी इस कथा के अंत मे दिख जाएगी.

बहुत से लोगों ने गणेशजी की चतुर्थी पर विधिवत पूजा की विधि और क्यों होती है संकष्ठि चतुर्थी की पूजा, इसके माहात्म्य के बारे में पूछा है. सबसे पहले माता पार्वती ने ही रखा था संकष्ठि चतुर्थी का व्रत, इसलिए चतुर्थी को पूजने वाले पर गणेशजी अतिप्रसन्न होते हैं.

हर माह में होती है संकष्ठि चतुर्थी उनमें से कुछ वहुत विशेष होती हैं जैसे आज की तिल चतुर्थी. गणपति प्रथमपूज्य, विघ्ननाशक, बुद्धि, विवेक, धन-धान्य और आरोग्य प्रदायक हैं इसलिए इनकी पूजा जरूर करनी चाहिए.

बुधवार को हर माह की चतुर्थी को गणपति की जो विशेष रूप से आराधना करते हैं उनपर गणेशजी बहुत प्रसन्न होते हैं. ग्रह मंडल में बुध और केतू जैसे ग्रहों के स्वामी हैं गणेशजी.

जो लोग चतुर्थी को बहुत पूजा नहीं कर पाते उन्हें कम से कम गणेशजी को “ऊं गं गणपत्यै नमः” की एक माला जपते हुए दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए. विद्यार्थियों के लिए तो सफलता के लिए माता सरस्वती के साथ गणेशजी की पूजा अवश्य करनी चाहिए.

सबसे पहले यह पूजा माता पार्वती ने की थी. पढ़िए विधि-विधान से गणेशजी का पूजन और क्यों पार्वतीजी ने रखा था पुत्र गणेशजी का व्रत?

श्रीगणेशजी की में आमतौर पर लोग एक बात की उपेक्षा कर देते हैं वह है गणपति के विभिन्न अंगों की विशेष पूजा. प्रथमपूज्य श्रीगणेश के विभिन्न अंगों के पूजन का महात्मय है.

शीश के स्थान पर हाथी का मस्तक, एक दांत का टूटने से लेकर, लंबोदर और मूषक वाहन होने के पीछे संसार के कल्याण की गाथा है. अतः गणेश पूजा में उनके अंगों का स्मरण आवश्यक है. आइए जानते हैं उनके अंगों की पूजा का विशेष मंत्र.

गणेशजी की विशेष पूजा सायंकाल में भी की जाती है. यदि आपने दिन में पूजा कर ली है तो भी संध्याकाल में गणपति के अंगों की आरती अवश्य कर लें. यह छोटा सा विधान बड़ा प्रभावशाली है. सुख-संपत्ति, संतान, आरोग्य, बल, बुद्धि और विद्यादायक है.

निम्न मंत्रों से करें गणेशजी के अंगों की पूजा. हर मंत्र के साथ उनके उस अंग को धूप,दीप, आरती दिखाएं.

. ऊं गणेश्वराय नमः पादौ पूज्यामि। (पैर पूजन)
. ऊं विघ्नराजाय नमः जानूनि पूज्यामि। (घुटने पूजन)
. ऊं आखूवाहनाय नमः ऊरू पूज्यामि। (जंघा पूजन)
. ऊं हेराम्बाय नमः कटि पूज्यामि। (कमर पूजन)
. ऊं कामरीसूनवे नमः नाभिं पूज्यामि। (नाभि पूजन)
. ऊं लंबोदराय नमः उदरं पूज्यामि। (पेट पूजन)
. ऊं गौरीसुताय नमः स्तनौ पूज्यामि। (स्तन पूजन)
. ऊं गणनाथाय नमः हृदयं पूज्यामि। (हृद्य पूजन)
. ऊं स्थूलकंठाय नमः कठं पूज्यामि। (कंठ पूजन)
. ऊं पाशहस्ताय नमः स्कन्धौ पूज्यामि। (कंधा पूजन)
. ऊं गजवक्त्राय नमः हस्तान् पूज्यामि। (हाथ पूजन)
. ऊं स्कंदाग्रजाय नमः वक्त्रं पूज्यामि। (गर्दन पूजन)
. ऊं विघ्नराजाय नमः ललाटं पूज्यामि। (ललाट पूजन)
. ऊ सर्वेश्वराय नमः शिरः पूज्यामि। (शीश पूजन)
. ऊं गणाधिपत्यै नमः सर्वांगे पूज्यामि। (सभी अंगों को धूप-दीप दिखा लें)

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

1 COMMENT

Leave a Reply to Tilock Bhura Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here