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रंतिदेव ने वह जल उसे दे दिया. चांडाल के जल पीते ही वहां पर ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रकट हो गए. रंतिदेव ने उन्हें प्रणाम किया. देवों ने उनसे अभीष्ट मांगने को कहा.
रंतिदेव ने मांगा- प्रभु संसार की किसी भी आसक्ती और स्पृहा मे नहीं लिप्त होना चाहता. मैं इन सबसे मुक्ति की कामना रखता हूं. मुझे भक्ति में लीन होना चाहता हूं.
श्रीहरि की इस मनोकामना से देवतागण बड़े प्रसन्न हुए. श्रीहरि ने उन्हें अपने अंदर लीन कर लिया और राजा के परिजनों को महादानियों में श्रेष्ठ पद पर आसीन किया.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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Raja RANTIDEV bahut hee dayalu the.unke raj me janta kabhie bhee dukhi nahee huui.raja rantidev ne ram rajya sthapit kiya tha..
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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