भगवान श्रीरामचंद्रजी के आशीर्वाद से आज से हम रामचरित मानस की शृंखला आरंभ कर रहे हैं.
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संत तुलसीदासजी ने रामचरितमानस, जिसे संक्षेप में मानस भी कहा जाता है, में संपूर्ण श्रीरामचरित को सात अलग-अलग कांडों में बांटा है. बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड.

सबसे पहले ईश्वर की वंदना की परंपरा रही है. तुलसीदासजी ने भी बांलकांड का आरंभ मंगलाचरण से किया है. प्रभु से त्रुटियों के लिए क्षमायाचना के साथ आज से मानस पाठ आरंभ करता हूं.

।।मंगलाचरण।।

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भावार्थ:- अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगल के सृजन की कारक माता सरस्वतीजी और श्रीगणेशजी की मैं वंदना करता हूं.

भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥

भावार्थ:- श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप माता पार्वती और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूं, जिनकी कृपा के बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते.

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