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वीरभद्र का क्रोध शांत हुआ. वह बोले- मैं जानता हूं, आपमें और शिवजी में कोई अंतर नहीं. परंतु जैसे आप शिवजी के वचन का पालन कर रहे हैं वैसे मैं भी उनका आदेश मान रहा हूं. मुझे आज किसी भी विनती को अस्वीकार करने का आदेश है.
विष्णुजी वीरभद्र की बात समझ गए. उन्होंने कहा- शिवद्रोहियों को दंड मिलता ही है. तुम मुझ पर सबसे भयानक अस्त्रों का प्रयोगकर मुझे घायल करो. घायल होकर ही मैं स्थान छोड़ सकता हूं. विष्णुजी के सुझाव पर वीरभद्र ने उन पर प्रहार किया.
सुदर्शन चक्र को स्तंभित कर दिया. शांर्ग धनुष के तीन टुकड़े करके अस्त्र-शस्त्र विहीनकर शीघ्र ही घायल कर दिया. विष्णुजी वहां से अंतर्धान होने को तैयार हो गए. वीरभद्र ने दक्ष को दंडित करक यज्ञ का नाश किया और शिवजी को सारी सूचना दी.
ब्रह्माजी के मुख से यह कथा सुनकर नारदजी ने पूछा- जब विष्णुजी को दक्ष और शिवजी की कटुता का पता था. दक्ष शिवजी को अपमानित करने को आतुर है, फिर भी वह उस यज्ञ में क्यों गए? शिवद्रोह के भागी क्यों बने?
ब्रह्माजी ने कहा- यह सब जो हुआ इसके पीछे राजा क्षुव और दधीचि की कथा है. जिसके कारण श्रीहरि को सब जानते हुए भी इसका भागी बनना पड़ा. क्षुव और दधीचि के बैर में श्रीहरि आ फंसे थे. यह उसी का परिणाम है.
(शिव पुराण रूद्र संहिता, सती खंड-2) क्रमशः जारी….
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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