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शिवजी की आज्ञा से वीरभद्र पराक्रमी गणों की सेना साथ लेकर चले. उनके चलने से पृथ्वी कांपने लगी. प्रत्येक कदम पर विचलित होकर पृथ्वी करवट बदलने लगती और यज्ञशाला में उलट-पुलट होने लगती. देवता वहां से भागने लगे.
दक्ष भय से कांप रहे थे. उन्होंने श्रीविष्णुजी के पांव पकड़ लिए और कहा- प्रभु मैं आपका शरणागत हूं. आप पर संसार के पोषण का दायित्व है. यज्ञ भंग हो गया तो अनिष्ट होगा. मुझे आपके सामर्थ्य पर विश्वास है. आप मेरी रक्षा करें.
श्रीहरि बोले- दक्ष शिवजी के प्रकोप से आपकी रक्षा कर पाना संसार में किसी के भी वश का नहीं है. आपको आपके कृत्यों का दंड तो मिलेगा ही. यह दंड दारिद्रय, मृत्यु या भय किसी भी रूप में हो सकता है. अपना कल्याण चाहते हो तो शिवजी के चरण पकड़ लो.
इससे पहले कि दक्ष श्रीहरि के परामर्श पर कुछ निर्णय कर पाते वीरभद्र वहां पहुंच गए. दक्ष को मृत्यु सामने दिखाई पड़ी. उसने श्रीहरि से कहा- आपके भरोसे यज्ञ का आरंभ किया था. अब शरणागत की रक्षा करिए.
श्रीहरि बोले- शरणागत की रक्षा के लिए मैं वचनबद्ध हूं किंतु तुम्हें बता दूं कि शिवद्रोही की रक्षा समस्त देवता मिलकर नहीं कर सकते. वीरभद्र का सामना कोई नहीं कर सकता. नैमिषारण्य में वीरभद्र ने अकेले सभी देवों को पराजित कर भगाया था.
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