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भार्गव परशुराम ने भगवान शिव के दिए परशु से असुरों का संहार कर देवताओं को भयमुक्त कर दिया. वे फिर से भगवान शिव के पास लौटे और उनकी स्तुति की.
शिवजी प्रसन्न होकर बोले- मैं तुमसे प्रसन्न हूं. कोई वरदान मांग लो. परशुराम बोले- हे प्रभु, आप सभी अस्त्र समूहों का ज्ञान मुझे प्रदान करें. शस्त्र और शास्त्रों में मुझसे श्रेष्ठ ज्ञाता दूसरा न हो. अपकी कृपा से तीनों लोक में मैं अजेय हो जाऊं.
भगवान शिव ने उन्हें चार प्रकार के आयुध, धनुष, बाण, कवच इत्यादि देने के साथ सुंदर रथ, अजेय होने एवं भूलोक में अपनी इच्छानुसार प्राणों के धारण करने का वरदान दे दिया.
राम ने यह सब ग्रहण करके कहा- भगवन, जब भी अस्त्रों और अन्य आयुधों की आवश्यकता को तो वे उपस्थित हो जाएं अन्यथा गुप्त रहें. शिवजी ने कहा- ऐसा ही होगा और अंतर्धान हो गए. सारे मनोरथ पूर्ण होने पर परशुराम चल पड़े.
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