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उन्होंने ब्रह्माजी से कहा- ब्रह्मदेव हमें सुदर्शन की कथा सुनाएं ताकि हम प्रेरणा पा सकें. संभव है हमें पुनः कोई मार्ग दिखाई पड़ जाए.

ब्रह्माजी ने कथा सुनानी शुरू की.

ब्राह्मण सुदर्शन बड़ा शिवभक्त था. उसने अपनी पत्नी से कहा– हे भामिनि, अतिथियों का कभी अपमान नहीं करना चाहिए. सभी अतिथि वास्तव में शिवस्वरूप ही हैं. उनके सत्कार के लिए यदि अपना शरीर भी होम करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए.

पत्नी पतिव्रता थी. पति की आज्ञा का पालन करती रही. एक दिन साक्षात धर्मराज ब्राह्मण का रूप धरकर परीक्षा लेने सुदर्शन के घर आए. सुदर्शन की पत्नी ने धर्म का भली प्रकार से पूजन किया. फिर भोग लगाने और भोजन का अवसर आया.

अतिथि फिर बोला- मुझे भोजन नहीं करना. मेरा सत्कार करना है तो अपना शरीर ही अर्पण कर दो.

वह धर्मसंकट में पड़ गई. पातिव्रत्य कैसे छोड़े? फिर पति ने कह रखा है कि अतिथि तो शिवस्वरूप है, उसकी इच्छा पूरी होनी चाहिए.

वह काफी देर तक विचार करती रही. उसने अतिथि को पुनः पूछा कि क्या यह अनिवार्य है. क्या इसके अतिरिक्त किसी और विधि से वह संतुष्ट न होगा. अतिथि तो बस संभोग की ही रट लगाए थे. विवश होकर वह अतिथि की इच्छा मानने को राजी हुई.

तभी सुदर्शन आया और बाहर से ही पूछा – सुभगे, कहां हो?

भीतर से अतिथि की आवाज आई- सुदर्शन! मैं तुम्हारा अतिथि हूं और तुम्हारी पत्नी के संग प्रेम में लिप्त हूं. तुम बाहर प्रतीक्षा करो.

सुदर्शन भी धर्मसंकट में था. अतिथि आया है. वह पत्नी संग प्रेमक्रीड़ा कर रहा है. अतिथि तो शिवस्वरूप है. इसलिए वह चुप रह गया.

सुदर्शन ने  कहा- अतिथि के मान की बात मैंने ही पत्नी को सिखाई थी. मुझे प्रसन्नता है कि वह पति की बात पर अडिग है. वह आपके साथ होकर भी श्रेष्ठ पतिव्रता है, मैं थोड़ी देर में आता हूं.

यह सुनते ही धर्मराज बड़े प्रसन्न हुए. तत्काल अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए.

धर्मराज बोले- सुदर्शन मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था. तुम उत्तीर्ण हुए. तुम्हारी पत्नी साध्वी है. उसे तन से तो दूर मैंने मन से भी नहीं भोगा है. जो अतिथि के लिए ऐसा त्याग करने को तैयार हो उसका धर्म कभी भंग ही नहीं हो सकता. सुदर्शन अतिथि शिवस्वरूप है इसमें कोई संदेह नहीं पर पत्नी को भी भगवती का अंश मानो.

तुमने पत्नी को जो सिखाया वह महान धर्म के भाव से प्रेरित था. तुम्हारा धर्म अटल है. परंतु पत्नी को स्वविवेक के निर्णय का भी अधिकार देना चाहिए. मैं यही उपदेश तुम्हें देने के लिए आया था. तुम पति-पत्नी भूलोक पर रहने वाले सर्वश्रेष्ठ धर्मात्माओं में से हो. मैं तुमसे प्रसन्न हूं. कोई वरदान मांग लो.

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