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शिवजी काशी में फिर से स्थापित हों इसके लिए भगवान विष्णु, चौंसठ योगिनियों और श्रीगणेश ने मिल कर युक्ति निकाली. दिवोदास काशी को खुद ही छोड़े इसके लिए देवों ने योगिनियों, सूर्य, ब्रह्मा, गणों, गणपति आदि को काशी भेजा.

भेजे गये सभी लोग भेष बदलकर काशी में अपना अपना काम कर रहे थे. बहुत समय बीतने पर भी शिवजी का कोई दूत न लोटा था उन्हें चिंता हुई कि आखिर क्या हुआ. उन्होंने विष्णुजी से चर्चा की.

विष्णुजी तो सब जान ही रहे थे. उन्होंने कहा कि मैं स्वयं पता करता हूं. इसके लिए एक योजना तैयार की गयी. काशी में गणपति ने अपना आवास एक मंदिर में बनाया.

रानी लीलावती तथा राजा दिवोदास सहित समस्त जनता जल्द ही गणेश से प्रभावित हो उन्हें मानने लगी थी. इसी बीच गणेशजी ने एक ज्योतिषी का रूप बनाया और राजा दिवोदास के पास पहुंचे.

ज्योतिषी बने गणेश ने राजा को बताया कि अठारह दिन बाद एक ब्राह्मण तुम्हारे पास पहुँचकर सच्चा उपदेश करेगा. दिवोदास अत्यंत प्रसन्न हुआ. अब विष्णु कथावाचक विद्वान ब्राह्मण के वेश में आये.

विष्णुजी ने अपना नाम पुण्यकीर्त, गरुड़ का नाम विनयकीर्त तथा लक्ष्मीजी का नाम गोमोक्ष बताया. वे स्वयं गुरु रूप में तथा उन दोनों को चेलों के रूप में लेकर काशी पहुंचे थे.

राजा को समाचार मिला तो गणपति की बात को याद करके उसने पुण्यकीर्ति का स्वागत किया और पूछा क्या चाहते हैं. विष्णु ने कहा- आपकी पुण्य नगरी में कथा वार्ता की अनुमति.

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1 COMMENT

  1. Very nice story. Prabhu sadev apne bhakto ki rakhsa karte hai. Shiv ji ki priya nagri Kashi or unka Vishwanath swaroop. Jai Maa Anapurna. Jai Vishwapati Vishwanath. Jai Sri Ganesh. Jai Sri Hari.

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