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बहुत बरस बाद भगवान शिव ने घोर तपस्या के लिए एकांत की आवश्यकता समझ काशी छोड़ने का निर्णय लिया. वह मंदरांचल चले गए. काशी के लोग जो भगवान शिव के संरक्षण में रहते थे. अब उनकी रक्षा और पालन कौन करेगा.

लोगों को उत्तम प्रजापालक मिलता रहे यह सोचकर भगवान शिव ने इस क्षेत्र की रक्षा के लिए पवित्र, धर्मनिष्ठ राजाओं को उत्पन्न किया जाए. शिवजी की इच्छा से परम प्रतापी हर्यश्व का जन्म हुआ.

इसके बाद इनके बहुत सुंदर बेटे पुरुरवा ,पुरुरवा के वीर आयुष, यहां के राजा हुए. शिव अभी नहीं लौटे. वह तप में लीन थे. आयुष के बाद, आयुष के प्रपौत्र, काश्य तथा काश्य के बाद, काश्य के पुत्र सुदेव, राजा हुए.

सुदेव से शंबर दैत्य ने इस क्षेत्र पर कब्जा लिया पर देवासुर संग्राम में इंद्र ने दैत्यों से सौ नगर जीते तो यह एक नगर सुदेव के पुत्र दिवोदास को भेंट कर दी. दिवोदास शिवभक्त था.

धनवंतरी के बाद आयुर्वेद का सबसे बड़ा ज्ञाता था. दिवोदास ही उस पहले शल्य चिकित्सा के विद्यालय का निर्माण कराया जिसके प्रथम प्राचार्य सुश्रुत बने. दिवोदास के राज में काशी की प्रजा बहुत सुख चैन से रहती थी.

पर जब राजा दिवोदास का काशी पर से राज समाप्त होने का समय आया तब वह अपना राजकाज हमेशा बना रहे इस वर प्राप्ति के लिये ब्रह्माजी की तपस्या करने चला गया.

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1 COMMENT

  1. Very nice story. Prabhu sadev apne bhakto ki rakhsa karte hai. Shiv ji ki priya nagri Kashi or unka Vishwanath swaroop. Jai Maa Anapurna. Jai Vishwapati Vishwanath. Jai Sri Ganesh. Jai Sri Hari.

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