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आखिरकार हमने वर्ष नामक ब्राह्मण को ढूंढ निकाला पर यह तो मूर्ख निकला. दिन भर चुपचाप, बिन बोले बैठा रहता. हम तो लौटने ही वाले थे कि उसकी पत्नी ने एक बात बताकर हमारे लिए रास्ते खोल दिए. उसने बताया-
मेरे पति कभी महामूर्ख थे पर अब परम ज्ञानी हैं. कार्तिक स्वामी की कृपा से उन्हें ज्ञान मिला है. पर कठिनाई यही है कि कोई सुकृत शृतिधर यानी जिसे एक ही बार में सब याद हो जाये वही इनसे विद्या सीख सकता है, और कोई नहीं.
अब हमें कोई ऐसा शृतिधर चाहिये जो एक बार ज्ञान को सुनकर तुरंत याद कर ले और फिर हमें बताए. हम दो चार बार दुहरा कर उसे याद कर लें. इसलिए आप अपने बेटे को हमारे साथ जानें दें.
इस पर मेरी मां ने कहा- जब यह पैदा हुआ था तो आकाशवाणी हुई थी कि यह वर्ष नामक ब्राह्मण से सब विद्या, सारे शास्त्र सीखकर व्याकरण का बड़ा विद्वान बनेगा और संसार इसे वररुचि के नाम से हजारों हजार बरस जानेगी.
आप लोग न आते तो इस बरस मैं इसे वर्ष के पास ले जाने वाली थी. आप के आने से मेरा यह काम सुगम हो गया. आप इसे खुशी के साथ वर्ष के पास ले जाइये.
दोनों ब्राह्मण खूब खुश हुये और अपने पास का सारा धन मेरी मां को दान दे दिया. उस पैसे से मेरी मां ने मेरा जनेऊ कराया और बड़े समारोह और तैयारी के बाद मुझे उनके साथ पाटिलीपुत्र भेजा.
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