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तपस्या से आपका संस्कार पूर्ण होने पर महादेव अपनी सहधर्मिणी अवश्य बनाएंगे. देवि! आपका हठ उत्तम है. शिव के अतिरिक्त कोई आपके योग्य ही नहीं.

देवी पार्वती ने नारदजी को गुरूस्वरूप स्वीकार करते हुए पूछा- आप सर्वज्ञ तथा जगत का उपकार करनेवाले हैं. मुने! मुझे वह मंत्र बताइए जो रूद्रदेव को सर्वाधिक प्रिय है और जिससे मैं उनकी आराधना करके प्रसन्न करूं.

नारदजी बोले- पंचाक्षर शिवमंत्र ऊं नम:शिवाय का उच्चारण करने से महादेव प्रसन्न होते हैं. मैं इसे शिवमंत्रों में मन्त्रराज कहता हूं. हे देवी आपको इस मन्त्र का परम अद्भुत प्रभाव सुनाता हूं.

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