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पार्वती नारदजी से मिलने आईँ. उन्होंने उनसे अपने मन का वही प्रश्न रखा जो उन्हें व्यथित करता था- आखिर महादेव ने अपनी क्रोधाग्नि में मुझे क्यों नहीं भस्म किया और क्या वह महादेव के योग्य नहीं है? क्या सारा तप व्यर्थ था.
नारदजी कहा- हे उमा! मैं जो कहने जा रहा हूं उसका तात्पर्य समझिएगा. आपने महादेव के लिए जैसा तप किया वह न तो किसी ने इससे पहले किया था और नही कर पाएगा परन्तु आपके तपस्वी स्वभाव में गर्व और हठ भी आ गया था.
आपने पूछा कि आप उस अग्नि से क्यों नहीं भस्म हुईं. सबपर कृपा करने वाले भगवान भोलेनाथ की अग्नि ने आपके उस गर्व को नष्ट किया. शिवे! आप जिनकी अभिलाषी हैं वह महेश्वर विरक्त और महायोगी हैं.
उन्होंने केवल कामदेव को जलाकर आपको सकुशल छोड़ दिया इसका कारण यह है कि वह भक्त वत्सल हैं. वह भक्तों के मन के अंधकार को भस्म करते हैं, क्योंकि वे उन्हें बड़े प्रिय हैं. अत: आप उत्तम मन से चिरकाल तक महेश्वर की आराधना करें.
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