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माता की बात बालक उपमन्यु के मन में बैठ गई. उसने संसार के सुख प्राप्ति के लिए शिवजी की आराधना का प्रण किया. उपमन्यु ने आठ ईंटों का एक मंदिर बनाकर उसमें मिट्टी का शिवलिंग स्थापित किया.
शिवलिंग स्थापित करने के बाद उपमन्यु ने देवी पार्वती समेत महादेव की आराधना करने लगा. वह पंचाक्षर मंत्र का जप करते थे. उपमन्यु ने दीर्घकाल तक महादेव की तपस्या की.
बालक उपमन्यु के कठोर तप से सारा त्रिभुवन कांपने लगा. देवताओँ ने महादेव से बालक को दर्शन देने की प्रार्थना की. देवों की प्रार्थना पर महादेव उपमन्यु की परीक्षा लेने आए.
महादेव के साथ देवराज इंद्र, उनकी पत्नी शची, नंदीश्वर औऱ बहुत सारे शिवगण भी पधारे. महादेव ने इंद्र का रूप धर लिया और बालक उपमन्यु से वर मांगने को कहा. उपमन्यु ने उनसे शिव की भक्ति मांगी.
सुरेश्वररूपधारी शिव ने महादेव की निंदा शुरू कर दी. यह सुनकर उपमन्यु ने कहा- मुझे आपसे कोई वरदान नहीं चाहिए. सुरेश्वररूपधारी महादेव, शिव निंदा करते रहे. कुपित होकर उपमन्यु ने उन्हें मारने के लिए अघोरास्त्र उठा लिया.
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