शनिदेव का क्रोध और शनिदेव द्वारा क्रोधित होने पर दिए जाने वाले दंड के बारे में बताने की आवश्यकता नहीं क्योंकि ऐसा कौन है जो इससे परिचित नहीं हैं पर क्या शनिदेव सचमुच क्रूर हैं. बिना वजह किसी को दंड देने और परेशान करने में उन्हें आनंद आता है. आपको शनिदेव को यदि समझना है तो बड़े धैर्य के साथ उनके कार्य को समझना होगा. फिर आप उनसे भयभीत होना बंद कर देंगे और श्रद्धा से उनकी सेवा कर प्रसन्न करेंगे. बहुत धैर्य से समझते हुए पढिएगा इस बात का अर्थ.
शनिदेव को स्वयं शिवजी ने उचित-अनुचित का निर्णय करके दंड निर्धारित करने और उस दंड का पालन पृथ्वीलोक पर ही सुनिश्चित कराने का अधिकार दिया है. यह बात बिलकुल वैसी ही है जैसे हमारे देश की संसद ने अदालतों को यह अधिकार दिया है और संसद स्वयं भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करती.
अदालतों में सुनवाई होती है और दोषी को दंड दिया जाता है. कभी निर्दोष को दंड हो जाए तो उसे मुअावजा भी दिया जाता है और जो अपराधी दोष को स्वीकार करके पश्चाचाप करता है और भूल सुधार के लिए तैयार रहता है उसकी सजा भी घटाई जाती है, साथ ही उसे कुछ सहायता भी दी जाती है ताकि वह अपना जीवन नए सिरे से शुरू करे.
आपने यह सब सुना होगा अपने देश की अदालतों में ऐसी व्यवस्था है. बिलकुल यही स्थिति शनिदेव की कचहरी की भी है. वह दंड देते हैं किंतु यदि व्यक्ति ने पश्चाताप करते भूल सुधारने का संकल्प दिखाया तो उसे नया अवसर भी प्रदान करते हैं.
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आप इस बात को गाठ बांध लें क्योंकि जो बात कही है वह सिर्फ शास्त्रों में नहीं पढ़ी, आजमाई हुई है अनेकों बार.
अपने कर्मों का दंड तो हमें भोगना ही पड़ेगा, हां हमारे पश्चाचाताप से और शनिदेव के शरणागत हो जाने से कष्टों में कुछ रियायत मिल जाती है. पीड़ा कम हो जाती है.
आप ऐसे समझ लें कि अगर अपराध के लिए थर्ड डिग्री का दंड बनता था तो थर्ड डिग्री की पीड़ा को क्षमा करके कोई साधारण सजा देकर छोड़ दिया जाएगा. क्या यह राहत कम है?
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शनिदेव भी समझते हैं कि उनके कोप की पीड़ा को झेल जाना सामान्य जीव के वश की बात नहीं है. इसलिए स्वयं शनिदेव ने ही एक रास्ता बताया है इस कोप से मुक्ति का.
अगले पेज पर जाने वह उपाय जो शनिदेव ने स्वयं सुझाया है.
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