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सावित्री ने कहा- प्रभु आपने मुझे सौ पुत्रों की मां बनने का आशीर्वाद तो दे दिया लेकिन बिना पति के मैं मां किस प्रकार से बन सकती हूं इसलिए आप अपने तीसरे वरदान को पूरा करने के लिए मुझे मेरा पति लौटा दें.
सावित्री के पतिव्रत धर्म पर यमराज बहुत प्रसन्न हो गए. उन्होंने सत्यवान के प्राण को अपने पाश से मुक्त कर दिया. यमराज ने कहा- तुमने अपने पातिव्रत्य धर्म के बल से अपने पति को जीवनदान दिया. तुम्हारा यश सर्वदा बना रहेगा.
सावित्री सत्यवान के प्राणों लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची और सत्यवान जीवित होकर उठ बैठे. दोनों हर्षित होकर अपनी राजधानी की ओर चल पडे. यमराज की कृपा से उनके माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई थी.
इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहें. सावित्री ने तीन दिवस का अनुष्ठान किया था. इसलिए तीन दिवस तक अनुष्ठान की मान्यता है.
सत्यवान के प्राण यमराज ने उसी वट वृक्ष के नीचे हरे थे और सावित्री के कारण वहीं वापस भी मिले इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री है.
मान्यता है कि वट सावित्री की इस कथा को सुनने और उपवास रखने से वैवाहिक जीवन या जीवनसाथी की आयु पर आया संकट टल जाता है.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
प्रभु शरणम्