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महात्माजी ने सेठ को अपने युवा बेटे से बातचीत करते सुना तो कुछ उत्सुकता हुई. सेठ बेटे को व्यापार के पैंतरे सीखा रहा था कि कर्मचारियों के वेतन में से थोड़ी-थोड़ी कटौती किस-किस बहाने की जा सकती है.
महात्माजी द्वार पर बैठे सुनते रहे. थोड़ी देर में सेठ बाहर आया. वह महात्माजी को पहचानता था. आदर से उन्हें घर के भीतर ले गया. महात्माजी ने बताया कि वह लाखों रुपए के रत्न किसी निर्धन को देकर उसका जीवन सुखमय करना चाहते हैं.
फिर उन्होंने वह थैली सेठ को देकर कहा- आशा है आपकी दरिद्रता दूर हो जाएगी और आपका जीवन सुखमय होगा. धन मिलने का सेठ का उत्साह समाप्त हो गया. उसने कहना शुरू किया कि उसका करोड़ो का कारोबार है. वह निर्धन नहीं है.
महात्माजी बोले- जो अपने आश्रितों के हक में से थोड़ी-छोड़ी चोरी की नीयत रखता हो उससे निर्धन संसार में दूसरा कौन हो सकता है. आप इस धन के सबसे योग्य पात्र हैं. सेठ समझ गया कि महात्माजी ने सारी बात सुनी है.
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