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ऋषि पंचमी व्रत की एक अन्य कथाः

किसी नगर में एक ब्राहमण था. उसका परिवार विधि-विधान से ऋषि पंचमी का व्रत किया करता था. एक बार ऋषि पंचमी को उसने पूजा के लिए प्रसाद बनाया. तभी किसी ने उसे आवाज लगाई तो उसे बाहर जाना पड़ा. वापस आने में उसे देर होने लगी.

उस ब्राह्मण की सात बहुएं थीं. सबसे छोटी बहु की नजर प्रसाद पर गई तो वह ललचा गई. उका मन प्रसाद खाने का हुआ. वह अपनी जिह्वा को रोक नहीं पाई तो सोचा कि यदि थोडा सा प्रसाद खा भी लेती हूं तो ससुरजी को क्या पता चलेगा. इसी विचार से उसने बिना भोग लगे पूजा के प्रसाद में थोड़ा सा निकालकर खा लिया और बरतन को बिलकुल वैसे ही रख दिया जैसे उसके ससुरजी रख गये थे.

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ब्राह्मण वापस आए. पूजा की और भोग लगाने के लिए लखेसरो (कौओ ) के पास रखा तो उन्होंने खाया नहीं.  उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. गौर से प्रसाग को देखा तो पाया कि प्रसाद में तो कीड़े हो गये थे. ताजा बने प्रसाद में कीड़े लग गए हैं. छोटी बहु पेट से थी.

प्रसाद की लालसा से आए लखेसरो ने उसे श्राप दिया कि एक ऋषि पंचमी को को तेरे बच्चा जन्म लेगा और एक ऋषि पंचमी को मरेगा. अब ऐसा ही होने लगा. ऋषि पंचमी को जन्म और मरण होने लगा इसके कारण ऋषि पंचमी की पूजा ही न हो पाती. सभी घर वाले परेशान होने लगे कि ये तो कोई त्यौहार ही नहीं करने देती.

परिवार के लोगों ने उसके पति से कहा- इसे जंगल में ले जाकर मारकर जानवरों को दे दो. हमारा तो इसने जीवन खराब कर रखा है. कम से कम जानवरों का भला हो जाए. जब सभी घर वाले उसके पीछे ही पड़ गये तो वो अपनी पत्नी (छोटी बहु ) को जंगल ले गया लेकिन उसने उसे मारा नही. वहीं छोड़कर चुपचाप घर आ गया और कह दिया कि इसे मारकर फेंक दिया है.

सब लोग अब ख़ुशी -ख़ुशी रहने लगे. उधर छोटी बहु जंगल में घुमती-घामती ऋषियों के आश्रम पहुंच गई. जब ऋषियों ने जंगल में अकेली औरत को देखा तो पूछा कि तुम यहाँ क्या कर रही हो तो उसने अपनी आपबीती ऋषियों को सुनाई.

ऋषियों ने उसे बताया कि तुम्हें तो श्राप मिला हुआ है इस कारण यह सब हो रहा है.  स्त्री ने शापमुक्ति का उपाय उनसे पूछा.  तब उन्होंने बताया कि तुम तालाब के पास जाओ जहाँ लखेसर नहाते हैं. उनके नहाये पानी के छीटें तुम्हारे ऊपर पड़ने से तुम्हारा यह दोष दूर होगा.

उस स्त्री ने ऐसा ही किया और इससे उसका दोष दूर हो गया. जब उसका पति उसे जंगल में छोड़ने गया था तो वह गर्भ से थी. शापमुक्त होने के कारण उसके जो बच्चा हुआ वह जीवित रहा. उसने वही जंगल में एक कुटिया बना ली और रहने लगी. उसका बच्चा भी बड़ा होने लगा.

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संयोग से एक दिन उसके पति के मन में पत्नी का हाल लेने का विचार आया. वह उसकी खोज लेने को वन में उस स्थान की ओर चला जहां उसे छोड़ आया था. जंगल में खोजने पर उसकी पत्नी उसे जीवित मिल गई. उसने देखा कि उसकी पत्नी एक बच्चे को खिला रही है.

वह उसके पास गया और पूछा कि तुम कैसी हो और ये बच्चा तुम्हारे पास कहा से आया. तब उसने सारी बात बताई कि कैसे उसका दोष दूर हुआ. यह सुनकर उसका पति बहुत खुश हुआ. उसे और अपने बच्चे को लेकर घर आया तथा अपने घरवालों को सारी बात बताई. सारे घरवाले बहुत खुश हुए और  छोटी बहु व उसके बच्चे का खूब स्वागत किया. सब लोग फिर से ख़ुशी-ख़ुशी एक साथ रहने लगे.

हे भगवान जैसे अंजाने में हुए इतने बड़े अपराध से छोटी बहु को मुक्त कराने का मार्ग दिखाया वैसे ही सबकी भूल माफ करें.

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