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वह जल को पीने ही वाले थे कि उन्हें ध्यान आया कि आज तो मैंने भगवान शिव के दर्शन किए ही नहीं हैं. बिना उनके दर्शन किए मैं जल कैसे ग्रहण कर सकता हूँ?
यह विचार आने से श्रीराम ने जल ग्रहण नहीं किया. उसके बाद भगवान ने महादेव के एक पार्थिव लिंग के पूजन का आयोजन किया. विधिवत पूजन की तैयारी की और फिर षोडशोपचार से विधिपूर्वक भगवान शिव की अर्चना की.
श्रीराम ने कहा– उत्तम व्रत का पालन करने वाले हे प्रभु महादेव! आप मेरी सहायता करें. आपकी सहायता के बिना मेरे इस कार्य की सिद्धि होना अत्यन्त कठिन है. रावण भी आपका भक्त है. आपकी कृपा से वह सभी के लिए अजेय है.
आपकी कृपा से वह त्रिभुवन विजयी है. आपसे प्राप्त उत्तम वरदान के अहंकार में चूर रहता है. मैं भी आपका सेवक हूं, आपकी इच्छा का ही अनुसरण करता हूं. सदाशिव! आप कल्याण करें और मेरी सहायता करें. यह पक्षपात उचित नहीं है.
इस प्रकार श्रीराम ने भगवान शिव की प्रार्थना की. उन्होंने भगवान शिव को पूर्णतया सन्तुष्ट करने के लिए अपना गाल बजाकर कुछ अव्यक्त (अस्पष्ट) शब्दों का उच्चारण किया.
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