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भागवत कथा के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज मैं बुध और इला के पुत्र पुरूरवा और भगवान नर-नारायण के उरू यानी जंघा से उत्पन्न अप्सरा उर्वशी की कथा सुनाता हूं. उर्वशी की जन्म कथा मैंने हाल में ही सुनाई थी.
भागवत कथा में पहले मैं आपको बुध और इला के संयोग से पुत्र के जन्म की कथा सुना चुका हूं. बुध और इला के पुत्र का नाम था पुरुरवा. पुरुरवा रूपवान और पराक्रमी था. पृथ्वी पर उसकी सर्वत्र ख्याति थी.
एक बार नारदजी देवसभा में राजा पुरुरवा के गुणों का बखान कर रहे थे जिसे सुनकर उर्वशी उन पर मुग्ध हो गईं. देवसभा में नृत्य-संगीत की प्रस्तुति के दौरान उर्वशी का ध्यान पुरुरवा के ख्याल में था.
उर्वशी ने जबसे पुरुरवा की चर्चा सुनी थी वह उससे प्रेम करने लगी. पुरुवरा के प्रेम में बंधी उर्वशी से देवसभा में नृत्य-संगीत में भूल हुई और क्रोधित इंद्र और वरुण ने उसे मृत्युलोक में जकर पुरुरवा के साथ रहने का शाप दे डाला.
उर्वशी पुरुरवा से प्रेम तो करती थी लेकिन भूलोक में रहने की कल्पना से कांप उठी. उसने इंद्र के चरण पकड़ लिए और शापमुक्ति की राह पूछी. इंद्र ने कहा- शापभंग तो नहीं हो सकता लेकिन मैं जल्द ही तुम्हें देवलोक ले आउँगा.
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