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इतने में भगवान विष्णु के पार्षद आ गये. उन्होंने मुझे मूसलों से बहुत कूटा. मैं आपके रोएं के साथ बने छेद से बाहर निकल आया. आपको एक कल्प तक विष्णु लोक में रहना था. सो मेरी तो वहां पर एक न चलती.

मैंने प्रतीक्षा की. कल्प समाप्त हो गया तो फिर महाप्रलय हो गया. अब मुझे अगली सृष्टि का इंतजार था. अबकी बार आप कश्मीर के राजा सुमना के बेटे के रूप में पैदा हुए.

मैं मौका ताड़कर फिर आपके रोमछिद्रों से ही आप में घुस गया. यह अलग बात है कि आपने इस बार बहुत से पुण्य कार्य किए. यज्ञ-हवन और दान-दक्षिणा करते रहे.

आप भक्ति-भाव में तो थे लेकिन फिर भी भगवान विष्णु के नाम का स्मरण उचित तरीके से नहीं हुआ था इसलिए आपके पुण्य में वह प्रताप नहीं था जो मुझे आपके शरीर से बाहर निकाल सके.

अब यह पुंडरीकाक्ष स्त्रोत का जप आपने आरंभ किया तो इसकी अपार शक्ति के चलते मेरा आपके शरीर में और टिके रहना असंभव हो गया है. इसलिए आपके रोमछिद्रों से ही मैं बाहर निकल आया हूं.

महाराज मैं वही भयानक ब्रह्मराक्षस अब व्याध बन गया हूं. आपके सामने हूं. पहले मैं आपका अहित करना चाहता था पर अब आपका बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे पुंडरीकाक्षपार स्त्रोत सुनने का अवसर प्रदान किया.
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