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प्रेत पीड़ा के कारण ये समस्याएं होने लगती हैं-
जब स्त्रियों का ऋतुकाल निष्फ़ल हो जाता है. वंश की वृद्धि नहीं होती, अल्पायु में किसी परिजन की मृत्यु हो जाती है. अच्छे भले में विचित्र सी कोई परेशानी महसूस होने लगे तो उसे प्रेत पीडा मानना चाहिए.
-अचानक आजीविका छिन जाती है, प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है. एकाएक घर में आग लग जाए, घर में नित्य कलह रहने लगे, जमा-जमाया व्यापार नष्ट हो जाय, हर तरफ़ से हानि हो, अच्छी वर्षा होने पर भी कृषि नष्ट हो जाय, स्त्री अनुकूल न रहे तो ये सब प्रेत पीड़ा के लक्षण हैं.
यदि ऐसी पीड़ा घर में होने लगे तो पितरों को प्रेतत्व से मुक्ति कराने के विशेष प्रयास करने चाहिए.
मृतक का वृषोत्सर्ग कराना परम आवश्यक होता है. यह कार्य कार्तिक की पूर्णिमा या आश्विन मास के मध्यकाल में करते हैं. यह संस्कार रेवती नक्षत्र से युक्त पुण्य तिथि में भी कर सकते हैं.
आपको मैं एक मणि दे रहा हूं. उससे प्राप्त धन से उत्तम ब्राह्मणों को निमन्त्रित करके, विधिवत अग्नि स्थापना करके, वेदमन्त्रों से होम करके, ब्राह्मणों को भोजन कराना. इस तरह मुझे इस स्थायी प्रेतत्व से मुक्ति प्राप्त हो जायेगी.
राजा बभ्रुवाहन ने अपने नगर में पहुंचकर ऐसा ही किया. वृषोत्सर्ग संस्कार पूरा होते ही वह प्रेत तत्काल स्वर्ण के समान देह वाला हो गया. उसने राजा के सामने उपस्थित होकर उसे प्रणाम किया.
उसने राजा बभ्रुवाहन की दयाशीलता की प्रशंसा करते हुए उनके प्रति घोर कृतज्ञता व्यक्त की और उसके बाद वह अपने पुण्यकर्मों के फ़लस्वरूप तत्काल स्वर्ग चला गया. (गरुड़ पुराण)
अस्वीकरणः यह पोस्ट किसी पुस्तक से ली गई है. हमारा उद्देश्य कोई अंधविश्वास प्रचार नहीं है. ये उपाय भूत-प्रेत से पक्के तौर पर शांति दिलाते हैं हम ऐसा दावा नहीं करते. चिकित्सीय इलाज सबसे जरूरी है. उनके साथ ही अन्य कोई प्रयोग करें तो एक अतिरिक्त सहायता हो जाती है.
मै आप कि इन मानयताओ से सहमत हु
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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