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पानी की खोज करता राजा पूरचक्र नामक सरोवर पर पहुंचा. राजा ने वहां जल पिया और स्नान भी किया. थकाने के कारण भ्रुवाहन को नींद आ गई. एक छायादार वृक्ष के नीचे वह सो रहा था. राजा के सोते ही वहां अनेक प्रेतों के साथ घूमते हुए प्रेतवाहन नाम का प्रेत आया. उसके शरीर में मात्र हड्डियां, चमड़ा और नसें ही नजर आती थी.
प्रेत भोजन की तलाश में घूम रहे थे. आहट सुन राजा उठ खड़ा हुआ और इस भयावह जीव को देखकर तत्काल धनुष उठा लिया.
राजा ने उसे ललकारते हुए पूछा- तुम कौन हो? कहां से आये हो? ये तुम्हारा शरीर इस तरह का विकृत कैसे हुआ है? वन अत्यन्त भयानक है. विभिन्न प्रकार की डरावनी अवाजें आती हैं. बहुत से जीवों के शब्द तो सुनाई पड रहे हैं पर दिखाई कोई नहीं देता. तुम कोई छद्मवेश धारी लुटेरे हो तो मैं तुम्हें बता दूं मैं राजा ब्रभुवाहन हूं. तुम्हारा काल. अपना वास्तविक परिचय दो अन्यथा मैं बाण चला दूंगा.
प्रेतवाहन बोला- राजा मैं आपका वास्तिवक परिचय जानता हूं. आप धर्मात्मा राजा हैं इसीलिए आप अब तक सुरक्षित हैं. आप वन के जिस भाग में है वह प्रेतों के कब्जे में है. यहां आने वाला प्रेतों का ग्रास बन जाता है.
बभ्रुवाहन ने कहा- मैंने प्रेतों के बारे में सुना है. आज पहली बार देखा है. मैं जानना चाहता हूं कि किसी को प्रेत योनि क्यों मिलती है. मुझे विस्तार से बताओ.
तब प्रेत बोला- हे राजन जिन मृतकों का अग्नि संस्कार, श्राद्ध-तर्पण, षटपिन्ड, दशगात्र, सपिन्डीकरण नहीं होता, जो लोग अकालमृत्यु, अपमृत्यु और पापकर्मों से मरे हैं. वे सब अपने पापकर्मों से भटकते हुए प्रेतरूप में यहां निवास करते हैं.
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इनको खाना-पानी बड़ी मुश्किल से मिलता है. ये अत्यधिक कष्ट में पड़े रहते है. आप इनका और्ध्वदेहिक या अंत्येष्टि संस्कार करें. जिनका अपना कोई नहीं होता, उनका संस्कार राजा के द्वारा होता है. इससे राजा के बहुत से अशुभ नष्ट हो जाते हैं.
हे राजन इस संसार में कौन किसका भाई है, कौन पुत्र है, कौन किसकी स्त्री है, सभी स्वार्थ के वशीभूत है, उसमें मनुष्य को विश्वास नहीं करना चाहिये. मनुष्य अपने कर्मों का भोग स्वयं करता है.
धन,महल,परिवार सब यहीं रह जाता है. भाई बन्धु भी शमशान तक ही साथ देते हैं. शरीर भी आग की भेंट कर दिया जाता है. जीव के साथ सिर्फ़ उसका पाप पुण्य ही जाता है.
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मै आप कि इन मानयताओ से सहमत हु
आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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