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पूर्वजन्म के कर्म यह तय करते हैं कि प्राणी अगले जन्म में किस योनी में आएगा और किस कुल में जन्म लेगा. जिसके कर्म अच्छे हों वह राजा होता है, जिसके बुरे वह रंक या दास.

राजा परीक्षित ने पूछा- ये नर्क कहां हैं? इनमें जीवों को क्या दंड मिलते हैं. मुझे मुख्य नर्कों के बारे में विस्तार से बताएं

शुकदेव बोले- नर्क त्रिलोक के भीतर ही हैं. यह दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे और जल के ऊपर स्थित हैं. मुख्य नरकों की संख्या इक्कीस बताई गई है.

शुकदेव ने कहा- अब मैं तुम्हें नर्क और उनमें होने वाली दुर्गति का वर्णन करता हूं. जो पुरुष पराई स्त्री, पराए धन और संतान का हरण करता है, उसे यमदूत तामिस्त्र् नामक नरक में धकेल देते हैं.

तामिस्त्र में यमदूत प्राणी को अन्न-जल नहीं देते और डंडों से पिटाई करते हैं. प्राणी एकाएक मूच्छिर्त हो जाता है.

जो पुरूष किसी दूसरे को धोखा देकर उसकी स्त्री को भोगता है, वह अन्धतमिस्त्र् नर्क में पड़ता है. वहाँ प्राणी जड़ से कटे हुए वृक्ष के समान होता है और पीड़ा के मारे होश खो देता है इसीलिए इसका यह नाम पड़ा.

जो क्रूर मनुष्य अपना पेट पालने के लिए जीवित पशु या पक्षियों को रांधता है, उसे यमदूत कुम्भीपाक नरक में ले जाकर खौलते हुए तेल में रांधते हैं.
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