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मछली तथा कछुए:
मछली और कछुए नारायण के प्रतीक स्वरूप हैं. नारायण ने मत्स्य एवं कच्छप अवतार लिए हैं. दोनों जलवासी हैं और नारायण भी जल में निवास करते हैं. कछुए या मछली को चारा देने से नारायण प्रसन्न होते हैं. इससे राहु-केतु जैसे क्रूर ग्रहों की शांत होती है और ये शुभफल देते हैं.
यदि किसी की राहु की महादशा शुरू हुई हो तो उस व्यक्ति को आटा का तुलादान करना चाहिए. आटा गूंथकर मछली या कछुओं को खिलाना शुरू कर देना चाहिए. इन उपायों से राहु की महादशा से शांति मिलती हैं और राहु के क्रूर फलों का नाश होता है.
तुलादान का अर्थ हुआ व्यक्ति का तराजू के एक पलड़े में बैठे और दूसरे पलड़े में आटा रखा जाए. उस वजन के आंटे की कीमत दुकानदार को दे दें और फिरे उसे दान कर दें. वैसे लोग आजकल अपने वजन के बराबर आटा खरीद लेते हैं और दान कर देते हैं. शास्त्र इसे उचित नहीं मानते. तुला के एक पलड़े में बैठना जरूरी है.
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ड्राइंगरूम या पूजाघर के उत्तर एवं वायव्य कोण में धातु या क्रिस्टल का कछुए रखने से धन-धान्य और समृद्धि आती है. कछुए नारायण का प्रतिनिधि है इसलिए वहां लक्ष्मी का प्रवेश होता है. ध्यान रहे कछुए का मुख घर के अंदर की ओर होना चाहिए न कि बाहर की ओर.
घर के वायव्य कोण या पूजास्थान में कांच के किसी पात्र में गंगाजल भरकर उसमें 2, 7, चांदी की 2, 7 या 12 मछलियां, मुक्ता सच्चा मोती डालकर रखें तो व्यक्ति को धन समृद्धि की प्राप्ति होगी. खासकर जिनके जन्मलग्न में चंद्रमा नीच राशि में स्थित होता है उनके लिए तो यह प्रयोग आश्चर्यजनक लाभ देता है. वृश्चिक राशि वालों को तो यह प्रयोग करके देखना ही चाहिए.
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अति सुदर वचन। धनयवाद।