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हिरण्याक्ष भी अपने भतीजे की तरह तेजस्वी संतान की इच्छा रखता था. शिवरूप में संतान प्राप्ति के लिए वह महादेव की तपस्या कर रहा था.
जब अंधक पैदा हो गया तो उसे लेकर शिवजी हिरण्याक्ष के पास गए. महादेव ने कहा- पूर्वजन्म और वर्तमान के कर्मों के कारण तुम मुझे प्राप्त नहीं कर पाओगे. फिर भी मैं तुम्हें अपने अंश से जन्मा पुत्र देता हूं.
महादेव ने अंधक को हिरण्याक्ष को सौंप दिया. शिवअंश पाकर हिरण्याक्ष बड़ा प्रसन्न हुआ. अंधे होने के कारण उसका बालक का नाम अंधक रखा गया.
अंधक को हिरण्याक्ष ने उत्तराधिकारी घोषित किया. परंतु असुर उसे कई कारणों से स्वीकार नहीं कर रहे थे.
एक तो वह अंधा था इस कारण वह देवों से युद्ध में असमर्थ था. दूसरा उसका जन्म असुरों से नहीं बल्कि दैवीय संयोग से हुआ था.
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