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एक छोटे बालक के मुख से ऐसी ज्ञानमयी और रहस्यपूर्ण बातें सुनकर नंदभद्र चकित हो पूछने लगे- आप कौन हैं और यहां कैसे पधारे है? आपने मेरे सब संदेहों को दूर कर दिया.
बालक ने कहा- पूर्वजन्म में मैं अहंकारी, पाखण्ड़ी, व्याभिचारी था. जिसके चलते मैं वर्षो से नीच योनियों में भटका. भगवान व्यासदेव की ऐसी कृपा कि वे हर योनि में मुझे मुक्तिमार्ग बता देते हैं. उन्होंने ही मुझे आपके पास भेजा है.
अब मैं सात दिन के बाद इसी तीर्थ में मरुंगा. आप मेरा अन्तिम संस्कार कर दीजिएगा. सूर्य मंत्र का जप करते हुए सातवें दिन उस बालक ने अपने प्राण त्याग दिए. नंदभद्र ने विधिपूर्वक उसका अन्तिम संस्कार किया.
नंदभद्र को जीवन की सचाई और सार्थकता का बोध हो गया था. शेष जीवन उन्होने भगवान् शिव और सूर्य की उपासना में लगा दिया तथा अन्त में जीवन मरण से मुक्ति पाकर भगवान शिव का साक्षात प्राप्त किया. (स्कन्दपुराण की कथा)
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