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ब्राह्मण ने कहा- मैं समझ गया कि तुम्हारे दुष्कर्मों के अनुसार ही तुम्हारे नाम पड़े हैं. मैं तुम सबके आचरण और आहार के बारे में जानना चाहता हूं.

प्रेतों ने बताया- जिस घर में श्राद्ध तर्पण, भक्ति-पूजा नहीं होती, अशौच, अशुद्धि रहती है. हम उसके शरीर से मांस और रक्त चूसकर उसे पीड़ित करते हैं.

मांस खाना, रक्त पीना ही हमारा आचरण है. मल और विभिन्न अभक्ष वस्तुएं ही हमारा भोजन है. हम सब अज्ञानी, तामसी और मन्दबुद्धि हैं. जाने कैसे अचानक ही हमें अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो गई. हमने कैसा व्यवहार किया, क्यों किया, हम यह नहीं जानते.

कथा सुनाकर श्रीकृष्ण गरूड़ से बोले- प्रेतों का वार्तालाप पूरा होते ही मैंने उन्हें दर्शन दिया. ब्राह्मण ने मेरी अर्चना कर प्रेतों के उद्धार की प्रार्थना की. मैंने ब्राह्मण और प्रेतों का उद्धार करते हुए ब्राह्मण संतप्तक समेत पांचों प्रेतों को भी अपने लोक में वास दिया.

प्रभु ने कहा- कर्मों के अनुसार दंड भोगना ही पड़ेगा. निकृष्ट कर्म करने वाला दंड से बच नहीं सकता. अज्ञानतावश उसे भ्रम होता है कि उसका पाप गुप्त रहेगा. फिर दैवयोग से उसमें भक्तिभाव जाग्रत होने के बाद ही उसका कल्याण होता है.

यदि मनुष्य अपना कल्याण चाहता है तो उसे पापों से दूर रहना चाहिए. यदि अज्ञानतावश कोई पाप हो जाए तो उसका तुरंत पश्चाताप करे अन्यथा उसे इस जन्म और अगले जन्म में इन पापों का कई गुणा दंड भोगना पड़ता है.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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