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मेरे मित्र की पत्नी ने सब की ममता त्यागकर तत्काल ही अपने पति के वियोग शोक में आग लगा कर जान दे दी. मैं बाधाविहीन हो, प्रसन्न मन घर लौट आया. जीवन भर उस धन का उपभोग किया, आनंद लूटा.

पर जब मैं मरा तो मेरा यह पाप कि मित्र को नदी में फेंक कर शीघ्र घर लौट आया, उसके कारण मुझे प्रेत योनि भुगतने का दंड मिला और उस प्रकरण के चलते मेरा नाम शीघ्रग हुआ.

रोधक बोला- हे विप्रवर, मैं शूद्र जाति का था. राजा और राज्य की अच्छी सेवा के बदले राजा से मुझे उपहार में सौ गांव मिले थे. मेरे परिवार में वृद्ध माता पिता और एक छोटा सगा भाई था. लोभ से मैंने भाई को अलग कर दिया.

मेरे पास अपार धन था जबकि भाई, भोजन वस्त्र की कमी से दुखी रहने लगा. उसे दुखी देखकर मेरे माता पिता मेरे मना करने पर भी मुझसे छिपाकर उसकी सहायता कर देते थे. कभी वस्त्र देते तो कभी भोजन और अन्न.

जब मुझे यह बात पता चली तो क्रोधित होकर मैंने माता पिता को जंजीरों से बांधकर एक सूने घर में डाल दिया. अकेलेपन और कष्ट से कुछ दिन बाद वे वहीं जहर खाकर मर गए. माता-पिता के मरने से छोटे भाई के पास कोई सहारा न रहा.

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