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अब शीघ्रगबोला- मैं तो एक धनवान वैश्य था. कारोबार के लिए देश परदेश की यात्रा करता ही रहता था. एक बार अपने एक घनिष्ठ मित्र के साथ व्यापार करने दूसरे देश को गया.
दुर्भाग्य से इस यात्रा में व्यवसाय मेरे मन के अनुसार नहीं हुआ. हर जगह घाटा ही हुआ स्थिति ऐसी भी आयी कि मेरा धन समाप्त हो चुका था. मेरे मित्र के पास बहुत धन था. मेरे मन में उस धन के लिए लोभ आ गया.
एक बार हम दोनों नाव से एक नदी से एक स्थान से दूसरे स्थान को जा रहे थे . जल मार्ग लंबा और नदी विशाल और गहरी थी. मेरा मित्र थककर सो गया.
लालच से मेरी बुद्धि क्रूर हो उठी थी. मैंने उचित अवसर भांपकर अपने मित्र को नदी में धकेल दिया. नाविक सहित कोई भी इस बात को न जान सका. मित्र के हीरे, जवाहरात सोना आदि लेकर मैं अपने देश लौट आया.
सारा सामान अपने घर में रखकर मैंने मित्र की पत्नी से जाकर कहा कि मार्ग में डाकुओं ने मेरे प्यारे मित्र को मारकर सब सामान छीन लिया. मैं बहुत दुःखी हूं और किसी तरह से जान बचा कर भाग आया हूं.
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