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निर्धन तो जैसे इस मौके की तलाश में था. उसने सोचा इन लोगों ने उसे बहुत सताया है. आज तीन घंटे में ही इतना पानी निकाल लूंगा कि कुछ बचेगा ही नहीं.

इसी नीयत से उसने बैलों को जोता पानी निकालने लगा. गाधी पर बैठा और बैलों को चलाकर पानी निकालने लगा. पानी निकालने का नियम है कि बीच-बीच में हौज और नाली की जांच कर लेनी चाहिए कि पानी खेतों तक जा रहा है या नहीं.

लेकिन उसके मन में तो खोट था. उसने सोचा हौज और नाली सब दुरुस्त ही होंगी. यदि बैलों को छोड़कर उन्हें जांचने गया तो वे खड़े हो जाएंगे.

उसे तो अपने खेतों में बीज बोने से अब मतलब नहीं था. उसे तो कुंआ खाली करना था ताकि किसी के लिए पानी बचे ही नहीं.

वह ताबडतोड़ बैलों पर डंडे बरसाता रहा. डंडे के चोट से बैल भागते रहे और पानी निकलता रहा.

तीन घंटे का समय पूरा होते ही दूसरा किसान पहुंच गया जिसकी पानी निकालने की बारी थी.

कुआं दूसरे किसान को देने के लिए इसने बैल खोल लिए और अपने खेत देखने चला.

वहां पहुंचकर वह छाती पीटकर रोने लगा. खेतों में तो एक बूंद पानी नहीं पहुंचा था. उसने हौज और नाली की तो चिंता ही नहीं की थी. सारा पानी उसके खेत में जाने की बजाय कुँए के पास एक गड़ढ़े में जमा होता रहा.

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2 COMMENTS

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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