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इंद्र ने श्रीहरि को सहायता के लिए पुकारा. श्रीहरि आए लेकिन ब्रह्माजी के वरदान की लाज रखने के लिए वह युद्ध से पीछे हट गए. देवलोक पर भीम का अधिकार हो गया था.

श्रीहरि को परास्त समझकर उसने पृथ्वी की विजय आरंभ की. उसने कामरूप के परम शिवभक्त राजा सुदक्षिण को जीतकर उन्हें बंदी बना लिया. भीम ने पृथ्वी पर देवताओं की पूजा और यज्ञ-हवन प्रतिबंधित कर दिया.

भीम के अत्याचार से दुखी ऋषि-मुनि और देवगण भगवान शिव की शरण में गए और प्राणियों का दुख दूर करने को कहा. उनकी प्रार्थना सुनकर और अपने भक्त सुदक्षिण पर अत्याचार से शिव कुपित थे और उन्होंने कहा कि वह भीम का संहार करेंगे.

भीम के बंदीगृह में पड़े हुए राजा सुदक्षिण पार्थिव शिवलिंग बनाकर पंचाक्षर मंत्र से पत्नी समेत महादेव की आराधना करते रहते. बंदीगृह में होने से उन्होंने गंगा की स्तुति की और उन्हें मानसिक रूप से पवित्र रखने की प्रार्थना की.

भीम को जब पता चला कि उसने संसार से पूजा-पाठ बंद करा दिया. लेकिन उसका बंदी ही शिवोपासना में लगा है तो वह क्रोध से आग-बबूला हो गया. वह तत्काल उस स्थान पर पहुंचा जहां सुदक्षिण पार्थिव शिवलिंग की अर्चना कर रहे थे.

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