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सर्वस्व गंवाकर नल अपनी पत्नी के साथ सिर्फ एक वस्त्र में राज्य से निकले. पुष्कर ने घोषणा कर दी थी कि जो भी प्रजा नल की सहायता करेगी उसे प्राणदंड मिलेगा. नल को कोई आश्रय न मिला. जुए का दंड इतना ही न मिलना था. अभी तो बहुत कुछ बाकी था.

एक दिन नल को बहुत से पक्षी दिखाई दिए जिनके पंख सोने के समान चमक रहे हैं. नल ने सोचा इनकी पंख से कुछ धन मिलेगा. नल ने अपनी धोती सोने के पक्षियों को फंसाने के लिए उछाल दी. पक्षी नल का वस्त्र लेकर ही उड़ गए. अब नल निवस्त्र होकर दीनता के साथ खड़े थे.

पक्षियों ने कहा- तुम नगर से एक वस्त्र पहनकर निकले थे. उसे देखकर हमें बड़ा दुख हुआ था. अब हम तेरे शरीर का वस्त्र लिए जा रहे हैं. हम पक्षी नहीं जुए के पासे हैं.

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नल ने दमयन्ती से पासे की बात बताई. ऐसी स्थिति में अपनी पत्नी के समक्ष उन्हें अपमान भी महसूस होता था. दमयंती परम रूपसी है, राजकुमारी है. उसे अपना भविष्य तय करने का अवसर दे देना चााहिए. यह सोचकर नल दमयंती को उस नगर के बारे में बताने लगे.

नल ने कहा- तुम देख रही हो, यहां बहुत से रास्ते हैं. एक अवन्ती की ओर जाता है, दूसरा दक्षिण देश को. सामने विन्ध्याचल पर्वत है. सामने का रास्ता विदर्भ को जाता है. यह कौसल देश का मार्ग है. नल दमयन्ती को भिन्न-भिन्न मार्ग बताने लगे.

दमयन्ती आशय समझ गई. दमयंती ने कहा- क्या आपको लगता है कि मैं आपको छोड़कर अकेली कहीं जा सकती हूं! दुख के समय पत्नी पुरुष के लिए औषधि समान है. वह धैर्य देकर पति के दुख कम करती है. लेकिन राजा नल दमयंती को त्यागने का फैसला कर लिया था.

कल तक नल राजा थे, आज शरीर पर वस्त्र नहीं है. सोने को चटाई तक नहीं है. उनकी करनी को पत्नी क्यों भरे. वह तो अपने पिता के पास जा सकती है. दमयंती सो गई तो नल ने एक कड़ा निर्णय किया.

दमयन्ती के सो जाने पर नल सोचने लगे कि दमयंती मुझ से बड़ा प्रेम करती हैं. प्रेमवश उसे इतना दुख झेलना पड़ेगा. यदि मैं इसे छोड़कर चला जाऊं तो संभव है कि इसे सुख प्राप्त हो. दमयन्ती सच्ची पतिव्रता है. इसके सतीत्व को कोई भंग नहीं कर सकता. अपने सतीत्व की रक्षा करने में समर्थ है. मैं नंगा हूं और दमयन्ती के शरीर पर भी केवल एक ही वस्त्र है.

नल ने दमयंती की साड़ी आधी फाड़ ली और उससे शरीर ढंककर दमयंती को वहीं छोड़कर निकल पड़े. उन्हें विचार आ रहा था कि दमयंती आज अनाथ के समान आधा वस्त्र पहने धूल में सो रही है.

यह मेरे बिना दुखी होकर वन में कैसे रहेगी? नल ने दमयंती से क्षमा मांगते हुए मन में विचारा- मैं तुम्हे छोड़कर जा रहा हूं. सभी देवता तुम्हारी रक्षा करें.

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नल का हृदय बैठा जा रहा था. नल के शरीर में कलियुग का वास था इसीलिए वह अपनी पत्नी को वन में अकेली छोड़कर वहां से चले गए. जब दमयंती की नींद टूटी, तब उसने देखा कि राजा नल वहां नहीं है. वह नल को चारों तरफ खोजने लगी.

दमयंती हारकर विलाप करने लगी. वह भटकती हुई जंगल के बीच जा पहुंची. वहां एक अजगर दमयंती को निगलने लगा. दमयंती मदद के लिए चिल्लाने लगी.

उधर से गुजर रहे एक व्याध(शिकारी)  ने सुन लिया. उसने तेज शस्त्र से अजगर का मुंह चीर डाला. फिर दमयन्ती को छुड़ाकर नहलाया, आश्वासन देकर भोजन करवाया.

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