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एक सन्त के आश्रम में एक शिष्य कहीं से एक तोता ले आया और उसे पिंजरे में रख लिया. सन्त ने कई बार शिष्य से कहा कि इसे कैद न करो, परतंत्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है.
परंतु शिष्य अपने बाल सुलभ कौतूहल को न रोक सका और उस तोते को पिंजरे में बन्द कर ही दिया. सन्त ने सोचा क्यों न इस तोते को ही स्वतंत्र होने का पाठ पढ़ाना चाहिए.
उन्होंने वह पिंजरा अपनी कुटी में मंगवा लिया और तोते को रोज सिखाने लगे- “पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ.” कुछ दिन में तोते ने इस वाक्य को भली भाँति रट लिया.
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