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महर्षि ने पूछा- जो पशु पक्षी मनुष्य के साथ रहने वाले हैं क्या उन पालतू पशु−पक्षियों को भी तुमने रोगी होते नहीं देखा?
इस प्रश्न पर शाकुंतल बोला- हाँ, गुरुदेव उनमें से बहुतों को मैंने बीमार होते और उनकी चिकित्सा होते भी देखा है परंतु वे ज्यादातर साधारण रोगों से ही ग्रस्त होते हैं. उचित चिकित्सा मिलने पर अपने पालक यानी मनुष्य की तुलना में जल्दी ठीक भी हो लेते हैं.
बहुत बार तो वे अपनी चिकित्सा स्वयं भी कर लेते हैं. उन्हें पालक के सहयोग की आवश्यकता ही नहीं होती. ऐसी विचित्रता क्यों है? गुरूवर कहते हैं कि मनुष्य ब्रह्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना है फिर ऐसा क्या मनुष्य से श्रेष्ठ रचना पशु-पक्षी हैं? क्या जो बात कही गई वह सत्य नहीं? क्या मैंने गलत सुना है गुरूदेव?
महर्षि मुद्गल ने शाकुंतल को समझाया-शांकुतल निःसंदेह तुमने जो सुना है वह सत्य ही सुना है. मनुष्य तो प्रजापति ब्रह्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना है ही. उसे ब्रह्मदेव ने बहुत से ऐसे गुण दिए जो पशु-पक्षियों में नहीं हैं. उसे विशेष प्रेम और लगाव से विधाता ने रचा.
शांकुतल ने विस्मय में पूछा- क्या प्रजापति ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना को रोगी होने का दंड दिया गुरूवर?क्या ब्रह्मदेव उसमें स्वतः निरोग करने का गुण देना भूल गए या कोई और बात है? मेरा कौतूहल शांत करें देव.
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