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बोपदेव की बुद्धि मोटी थी. वह गुरु के समीप बैठकर अध्ययन करते पर उन्हें कुछ समझ में नहीं आता. बोपदेव ने हार मान ली कि वह शायद ही अध्ययन कर पाएंगे. सो इस झंझट से दूर हो जाना ही ठीक है. वह घर से निकल पड़े.
प्रभु ने तो उनके लिए कुछ और ही निर्धारित किया था. घूमते घूमते बोपदेव एक सरोवर के तट पर पहुंचे. सरोवर पर पत्थर के घाट बने थे. बोपदेव बैठे ही थे कि इतने में एक स्त्री घड़ा लेकर आई और उसे घाट पर रख नहाने लगी.
थोड़ी देर में वह नहा-धोकर और घड़े में पानी लेकर चली गई. बोपदेव ने देखा कि जहाँ उस स्त्री ने घड़ा रखा था, वहां पत्थर पर एक गङ्ढा सा बन गया है. यह गड्ढा पुराना प्रतीत होता है.
बोपदेव ने मन ही मन सोचा कि जब पत्थर जैसी कठोर वस्तु मिट्टी के घड़े की रगड़ से घिस जाती है, तब लगातार परिश्रम करने में मेरी मोटी बुध्दि भी क्या घिसकर तेज न हो पाएगी?
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