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मंथर नें लोमशजी के पास जा कर कहा- ऋषिवर, राजा इंद्रद्युम्न कुछ पूछ्ना चाहते हैं. लोमशजी की अनुमति पाकर इंद्रद्युम्न बोले-पहली जिज्ञासा तो यही है मुनिवर की आप अपने निवास के लिए कुटिया क्यों नहीं बनाते?

लोमश मुनि बोले- यह शरीर निश्चित ही नष्ट हो जाना है, ऐसे में घर, निवास क्यों? यौवन, धन तथा जीवन सब नष्ट हो जाना है इसलिए दान ही सर्वश्रेष्ठ है.

राजा ने दूसरा प्रश्न किया- आपको यह लंबी उम्र तप से मिली है या दान के प्रभाव से. लोमश ऋषि ने कहा- राजन पिछले जन्म में मैं एक दरिद्र शूद्र था. एक दोपहर मैं कई दिन से भूखा था कि एक सरोवर में विशाल शिवलिंग देखा.

पास से खूब बड़े-बड़े सुंदर कमल के फूल तोड़े और भगवान शंकर को चढा दिए फिर आगे चल पड़ा. थोड़ी ही दूर जाने पर भूख से मेरी मौत हो गयी. अगले जन्म में मैं शिव पूजा के प्रभाव से ब्राह्मण के घर पैदा हुआ.

मुझे पिछली जन्म की सारी बातें याद थी इसलिये हमेशा चुप रहता और शिव की पूजा में लगा रहता. माता पिता के मरने के बाद सगे संबंधियों ने मुझे गूंगा और बेकार का पुजारी समझ त्याग दिया तो मैं और भी लगन से भगवान शिव की आराधना में डूब गया.

इस तरह सौ साल बीत गये तो भगवान शिव मुझपर प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे प्रत्यक्ष दर्शन दे लंबी आयु का वरदान दिया. यह सुनकर राजा इंद्रद्युम्न, चिरायु गीध, प्रकारकर्मा उलूक, नाड़ीजंघ बगुला और मंथर कछुए ने भी लोमशजी से शिवदीक्षा ली और तप करके मोक्ष को प्राप्त किया.

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