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रैभ्य मुनि ने वृहस्पति से कहा कि इस बात की शंका हमारे मन में हमेशा रही है कि मोक्ष किसे मिलेगा वह जो ज्ञानवान है या उसे जो कर्मशील है. हमारा संदेह दूर कर दीजिए.
वृहस्पति बोले इस संदर्भ में ब्राह्मण और शिकारी की एक कथा सुनाता हूं. अत्रि के कुल में पैदा संयमन तथा अधम कर्म करने वाले बहेलिये निष्ठुरक की कथा तुम्हारे संदेह को दूर करने में सहायता करेगी.
तीनों पहर नहाकर पूजा पाठ करने वाले संयमन गंगा में जहां नहाने गये वहां एक शिकारी दिखा. संयमन बोले-यह जीवहत्या का काम ठीक नहीं इसे छोड़ दो. यह सुनकर निष्ठुरक नामक वह शिकारी मुस्कराने लगा.
संयमन के आगे बोलने से पहले वह बोला. सभी प्राणियों में आत्मा के रूप में भगवान बसते हैं. सच्चे पुरुषों को चाहिए कि वह इस अहंकार को त्याग दे कि मैं कर्ता हूं, कोई काम मैं कर रहा हूं, यह सोचना बेकार है.
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