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स्वर्ण मृग के शिकार की कामना से उस शिकारी ने अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया. इससे पहले कि वह नारदजी के वध के लिए बाण चलाता सूर्यास्त हो गया. अंधेरे में उसने बाण चलाना सही नहीं समझा.
बहेलियां जहां था वहां पास में झाड़ियों में उसे दिखा कि एक सांप मेंढक को निगल गया है, किन्तु मृत्यु को प्राप्त करते ही मेढ़क शिव के स्वरूप में हो गया. वह हैरान था.
वह कुछ दूर और आगे गया, तो देखा कि एक बाघ ने हिरण को मार डाला है, किन्तु वह हिरण भी मरने के बाद शिवगणों के साथ शिवलोक की ओर प्रस्थान कर रहा है.
इन सब दृश्यों को देखकर वह बहेलिया भ्रमित और चकित हो उठा. इतने में ऋषि नारद उस बहेलिये के पास पहुंच गए. नारदजी को देख शिकारी ने सारी घटनाएं कहीं और उसके बारे में पूछा.
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